तेरा चेहरा !


                                     ईद का चाँद नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !
                                     हर घड़ी हर पल नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !!

                                     जब भी पढ़ने बैठता  हूँ मैं, गीता या कुरान !
                                     हर पन्ने पे नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !!

                                     मैं तुमसे भागकर इस ज़माने में कहाँ जाऊँगा !
                                     कि हर इंसान में नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !!

                                    मैं कहीं भी चला जाऊ , इतनी बड़ी दुनिया में !
                                    ज़र्रे-ज़र्रे में नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !!

                                    ईश्वर हो,  अल्लाह हो,  वाहे-गुरू हो  , या गोड !
                                    हर एक फ़रिश्ते में नज़र आता है मुझे, तेरा चेहरा !!

                                    मेरे इस दर्दे-मोहब्बत की इन्तहां देखो !
                                    मौत में भी नज़र आता है मुझे, चेहरा तेरा !!

                                                                                                    प्रमोद मौर्या "प्रेम "

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मत छोड़ मुझे इन राहों में !


ऐ काश कि तुम आ जाओ,   और भर लो मुझको बाहों में !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, मत छोड़ मुझे इन राहों में !!

तेरी राह तकूँ मैं वरसों से,  बनकर सुर मैं साज़ों में !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, मत छोड़ मुझे इन राहों में !!

आयेगा तू है मुझको यकीं , बनकर चाँद अँधेरी रातों में !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, मत छोड़ मुझे इन राहों में !!

लो आज की रात भी बीत गयी, तेरी खट्टी-मीठी यादों में !
 मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, मत छोड़ मुझे इन राहों में !!

अब आ भी जा और देर न कर, बस जा तू मेरी निगाहों में !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, मत छोड़ मुझे इन राहों में !!

                                                           प्रमोद मौर्या "प्रेम"

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ये बात समझ में नहीं आती !


कश्मकश में है जिंदगी , ये बात समझ में नहीं आती !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ या नफरत, ये बात समझ में नहीं आती !!

मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ ये बात तो सच है !
मैं तुमसे नफरत करता हूँ ये बात भी सच है !!
मैं तुमसे मोहब्बत ज्यादा करता हूँ या नफरत, ये बात समझ में नहीं आती !!

 कश्मकश में है जिंदगी , ये बात समझ में नहीं आती !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ या नफरत, ये बात समझ में नहीं आती !!

मैं तुमसे मिलने को तड़पता हूँ ये बात सच है !
मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ ये बात भी सच है !!
मैं तुम्हें वाकेई मिलना चाहता हूँ या भूलना, ये बात समझ में नहीं आती !!

कश्मकश में है जिंदगी , ये बात समझ में नहीं आती !
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ या नफरत, ये बात समझ में नहीं आती !!
                                                              
                                                                            प्रमोद मौर्या "प्रेम"

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मेरे आदर्श खिलाड़ी :- "सचिन तेंदुलकर "


सचिन तेंदुलकर  मेरे आदर्श खिलाड़ी है ! क्रिकेट जगत वे ऐसे  महान खिलाड़ी हैं, जिनका रिकार्ड तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है !

सचिन तेंदुलकर क्रिकेट इतिहास में विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ों में शामिल एक भारतीय क्रिकेटर हैं। वे बल्लेबाज़ी में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। सचिन तेंदुलकर ने टेस्टएकदिवसीय क्रिकेट, दोनों में सर्वाधिक शतक अर्जित किये हैं। वे टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ है। इसके साथ टेस्ट क्रिकेट में 15,000 से अधिक रन बनाने वाले वे विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं। एकदिवसीय मैचों में भी उन्हें कुल सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान प्राप्त है।
  • सचिन विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं जिसने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक लगाये हैं।
  • सचिन राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं। वे सन् 2008 में पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है।
  • वे क्रिकेट जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं और विश्वभर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से लिटिल मास्टरमास्टर ब्लास्टर कह कर बुलाते हैं।

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मेरी पसंदीदा गायिका :- "लता मंगेशकर जी"

लता मंगेशकर जी मेरी पसंदीदा गायिका है !
उनकी आवाज़ में जो जादू और कसीस है वो किसी में नहीं है !

लता मंगेश्कर
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पृष्ठ्भूमि
जन्म28 सितंबर 1929 (1929-09-28) (आयु 82)इंदौर, तत्कालीन सेंट्रल इंडिया एजेंसी, भारत
शैली(यां)फिल्म संगीत (पार्श्वगायिका), भारतीय शास्त्रीय संगीत
व्यवसायगायिका
वाद्यVocalist
सक्रीयता काल1942 - वर्तमान
भारत  रत्न लता मंगेशकर (जन्म 28 सितंबर, 1929 इंदौर), . भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।
लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।

पेश है उनका गया हुआ ये गाना ......

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम ख़ूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सबका
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -2
जो लौटके घर न आए -2

ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो कुर्बानी

जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो -2
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद …

जब देश में थी दिवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में -2
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद ..

कोई सिख कोई जाट मराठा -2
कोई गुरखा कोई मदरासी -2
सरहद पे मरनेवाला -2
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर
वो खून था हिन्दुस्तानी
जो शहीद …

थी खून से लथपथ काया
फिर भी बंदूक उठाके
दस -दस को एक ने मारा
फिर गिर गए होश गँवा के
जब अंत -समय आया तो
कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफर करते हैं -2
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद …

तुम भूल न जाओ उनको
इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद … 
जय हिंद जय हिंद की सेना -2
जय हिंद , जय हिंद , जय हिंद

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मेरे पसन्दीदा गायक :- "रफ़ी साहब " !



मुहम्मद रफ़ी (जन्म- 24 दिसम्बर 1924, अमृतसर, पंजाब; मृत्यु- 31 जुलाई 1980 मुंबई, महाराष्ट्र) हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। जिन्होंने क़रीब 40 साल के फ़िल्मी गायन में 25 हज़ार से अधिक गाने रिकॉर्ड करवाए। अपनी आवाज़ की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता था।

रफ़ी साहब मेरे पसन्दीदा गायक है ! उनके गाये हर गीत मेरे दिल को छू कर गुजरती है !

पेश है उनका गाया हुआ ये गीत ...

वो जब याद आए, बहुत याद आए
वो जब याद आए, बहुत याद आए
गम-ऐ-जिंदगी के अंधेरे में हमने
चिराग-ऐ-मोहब्बत जलाये-बुझाये
वो जब याद आए, बहुत याद आए

आहटे जाग उठी रास्तें हँस दिए
थामकर दिल हम किसी के लिए
कई बार ऐसा भी धोका हुआ है
चले आ रहे है वो नजरें झुकाए
वो जब याद आए, बहुत याद आए
गम-ऐ-जिंदगी के अंधेरे में हमने
चिराग-ऐ-मोहब्बत जलाये-बुझाये
वो जब याद आए, बहुत याद आए

दिल सुलगने लगा अस्ख बहने लगे
जाने क्या-क्या हमे लोग कहने लगे
मगर रोते-रोते हसीं आ गई है
ख्यालों में आके वो जब मुस्कुराये
वो जब याद आए, बहुत याद आए

वो जुदा क्या हुए, जिंदगी खो गई
शम्मा जलती रही, रौशनी खो गई
बहुत कोशिशे की मगर दिल न बहला
कई साज छेड़े कई गीत गाये
वो जब याद आए, बहुत याद आए

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जिए जा रहा हूँ मैं !


                                      तेरी यादों के साये में, जिए जा रहा हूँ मैं !
                                     तुम्हें देखने की चाहत में, जिए जा रहा हूँ मैं !!

                                     ना दिन की खबर ,ना रात की फ़िकर !
                                     तुझे पाने की चाहत में, जिए जा रहा हूँ मैं  !!

                                     बड़ी आसानी से तुमने मेरा दिल तोड़ दिया !
                                     आज भी अपना ज़ख्मी दिल सिये जा रहा हूँ मैं  !!

                                     मुझे मालूम है मैं, तुम तक नहीं पहुँच सकता !
                                     फिर भी तुम्हे छूने की चाहत में, जिए जा रहा हूँ मैं !!

                                    तुमसे बिछड़े हुए मुझे, एक अरसा हुआ !
                                    तुम्हे मिलने की चाहत में, जिए जा रहा हूँ मैं !!

                                                                                        प्रमोद मौर्या "प्रेम"

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जन्मदिन मुबारक हो मेरी प्यारी "ऋचा " !

("ऋचा" )

मेरी प्यारी भांजी "ऋचा" आपको जन्मदिन की 14वीं सालगिरा मुबारक हो !
आप हमेशा हँसती -खेलती और मुस्कुराती रहे ये दिल से दुआ है !



मेरी तरफ से आपको, आपकी पसंद का "बर्थडे कैक" !


("ऋचा" )

                                     चेहरा आपका खिला रहे गुलाब की तरह
                                     नाम आपका रौशन रहे आफ़ताब की तरह
                                     गम में भी आप हसंते रहना फूलों की तरह
                                     अगर हम कभी तुम्हरा साथ न दे पाये
                                     तो भी आप अपना जन्मदिन मनाते रहना इसी तरह...

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काका ( राजेश खन्ना जी ) को श्रधांजलि ....



जिंदगी देना और जिंदगी लेना ऐ सब उपरवाले के हाथ  मे है ........जहा पनाह जिसे ना आप बदल सकते हैं.ना मै हम सब तो रंग मंच की कटपुतलीया है..जिसकी डोर उपरवाले के हाथ बंधी हैं....कब.. कोन... कैसे उठेगा ऐ कोई नही जानता...हा हा हा हा हा ..आनंद फिल्म के ये संवाद सब को रुला देते है।  अलविदा बाबू मोशाय ...............

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मुझे गज़ल सुनने का बड़ा शौक है !

मुझे गज़ल सुनने का बड़ा शौक है ! खास कर जगजीत सिंह जी  की गायीं गजलें मुझे बहुत अच्छी लगती है ! इनके अलावा पंकज उदास , चन्दन दास , अनूप जलोटा , विजय राथोर की गजलें मुझे बहुत अच्छी लगती है !



किसका चेहरा अब मैं देखूं
चाँद भी देखा फूल भी देखा
बादल बिजली तितली जुगनूं कोई नहीं है ऐसा
तेरा हुस्न है जैसा

मेरी निगाहों ने ये कैसा ख्वाब देखा है
ज़मीं पे चलता हुआ माहताब देखा है


मेरी आँखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर
किसका चेहरा अब मैं देखूं तेरा चेहरा देखकर

नींद भी देखी ख्वाब भी देखा
चूड़ी बिंदिया दर्पण खुश्बू कोई नहीं है ऐसा
तेरा प्यार है जैसा

रंग भी देखा रूप भी देखा
रस्ता मंज़िल साहिल महफ़िल कोई नहीं है ऐसा
तेरा साथ है जैसा


बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
बना दीजिए इनको किस्मत हमारी
उसे और क्या चाहिये ज़िंदगी में
जिसे मिल गई है मुहब्बत तुम्हारी

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तेरी याद !

 
                                  क्यों तेरी याद मुझे हर पल सताती है !
                                  क्यों तेरे ख्वाब मुझे रात भर जगती है !!
                                  जब तुमने मुझे निकाल दिया है अपने दिल से !
                                  फिर क्यों तेरी याद मेरे पास चली आती है !!
                                  मैं जानता हूँ तुम मुझे कभी न मिलोगे !
                                  फिर क्यों इस दिल को तेरी जुस्तुजू सताती है !!
                                  जब मेरी तक़दीर में बिछड़ना ही लिखा है !
                                  फिर क्यों जिंदगी ऐसे लोगों से मिलाती है !!
 
                                                                                                 प्रमोद मौर्या "प्रेम"

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गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित :- हनुमान चालीसा



                       दोहा

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

               चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

                        दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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ये भी कोई बात हैं !



पल भर में हमको जान लिया, ये भी कोई बात हैं,
एक बात पर बुरा मान लिया, ये भी कोई बात हैं,

प्यार में ज़रुरी हैं थोड़ी सी नोक झोक भी,
तुमने कहा, मैंने मान लिया, ये भी कोई बात हैं,

ज़िंदगी बीत जाती हैं सच की तलाश में,
किसी से पूछा और जान लिया, ये भी कोई बात हैं,

रिश्तों का तकाज़ा हैं, लेन-देन चलती रहे,
एहसान पर एहसान लिया, ये भी कोई बात हैं,

गर ज़बान एक हैं, तो बात भी एक ही हो,
मुकर गए फिर ठान लिया, ये भी कोई बात हैं,

अंगूठा न सही कुछ पैसे ही देते "यावर",
मुफ्त में हमसे ज्ञान लिया, ये भी कोई बात हैं|

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अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है ...


1) अच्छे एवं महान् कहे जाने वाले सभी प्रयास-पुरुषार्थ प्रारम्भ में छोटे होते है।
2) अच्छे विचार मनुष्य को सफलता और जीवन देते है।
3) अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है।
4) अच्छे जीवन की एक कुँजी हैं- अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता को चुनना और उसे विकसित करना।
5) अच्छे लोगों की संगत अच्छा सोचने की पक्की गारंटी है।
6) अतीत से सीखो, वर्तमान का सदुपयोग करो, भविष्य के प्रति आशावान रहो।
7) अर्जन का सदुपयोग अपने लिए नहीं ओरो कि लिए हो। इस भावना का उभार धीरे-धीरे व्यक्तित्व को उस धरातल पर लाकर खडा कर देता है, जहाँ वह अनेक लोगो को संरक्षण देने लगता है।
8) अन्धकार में भटकों को ज्ञान का प्रकाश देना ही सच्ची ईश्वराधना है।
9) अनीतिपूर्ण चतुरता नाश का कारण बनती है।
10) अनाचार बढता हैं कब, सदाचार चुप रहता है जब।
11) अनवरत अध्ययन ही व्यक्ति को ज्ञान का बोध कराता है।
12) अनुकूलता-प्रतिकूलता में राजी-नाराज होना साधक के लिये खास बाधक है। राग-द्वेष ही हमारे असली शत्रु है। राग ठन्डक है, द्वेष गरमी हैं, दोनो से ही खेती जल जाती है।
13) अनुकूलता-प्रतिकूलता विचलित करने के लिये नहीं आती, प्रत्युत अचल बनाने के लिये आती है।
14) अनुभव संसार से एकत्रित करें और उसे पचानेके लिये एकान्त में मनन करे।
15) अनुभवजन्य ज्ञान ही सत्य है।
16) अनुशासित रहने का अभ्यास ही भगवान की भक्ति है।
17) अन्त समय सुधारना हो तो प्रतिक्षण सुधारो।
18) अन्तःकरण की मूल स्थिति वह पृष्ठभूमि हैं, जिसको सही बनाकर ही कोई उपासना फलवती हो सकती हैं। उपासना बीज बोना और अन्तःभूमि की परिष्कृति, जमीन ठीक करना हैं। इन दिनों लोग यही भूल करते हैं, वे उपासना विधानों और कर्मकाण्डो को ही सब कुछ समझ लेते हैं और अपनी मनोभूमि परिष्कृत करने की ओर ध्यान नहीं देते।
19) अन्तःकरण की पवित्रता दुगुर्णो को त्यागने से होती है।
20) अन्तःकरण की सुन्दरता साधना से बढती है।
21) अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुसरण करों।
22) अन्तःकरण को कषाय-कल्मषों की भयानक व्याधियों से साधना की औषधि ही मुक्त कर सकती है।
23) अन्तःकरण में ईश्वरीय प्रकाश जाग्रत करना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है।
24) अन्तःकरण ही बाहर की स्थिति को परिवर्तित करता है।

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क्रोध यमराज है ...


1- क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है।
2- मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।
3- क्रोध करने का मतलब है, दूसरों की गलतियों कि सजा स्वयं को देना।
4- जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो।
5- क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है।
6- क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है।
7- क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक जाती है।
8- जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
9- क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए।
10- क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।
 11- क्रोध यमराज है।
12- क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है।
13-क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं।
14- जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है।
15- सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में थक जाता है।
16- क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक।
17- क्रोध क्या हैं ? क्रोध भयावह हैं, क्रोध भयंकर हैं, क्रोध बहरा हैं, क्रोध गूंगा हैं, क्रोध विकलांग है।
18- क्रोध की फुफकार अहं पर चोट लगने से उठती है।
19- क्रोध करना पागलपन हैं, जिससे सत्संकल्पो का विनाश होता है।
20- क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है।
21- क्रोध पागलपन से शुरु होता हैं और पश्चाताप पर समाप्त।
22- क्रोध से मनुष्य उसकी बेइज्जती नहीं करता, जिस पर क्रोध करता हैं। बल्कि स्वयं अपनी प्रतिष्ठा भी गॅंवाता है।
23- क्रोध से वही मनुष्य सबसे अच्छी तरह बचा रह सकता हैं जो ध्यान रखता हैं कि ईश्वर उसे हर समय देख रहा है।
24- क्रोध अपने अवगुणो पर करना चाहिये।

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मेरी प्रिय पुस्तक :- श्रीमद भगवद्गीता !

( श्रीमद भगवद्गीता )

-------------------------गीता- सार------------------------- 

क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

  • जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।


  • तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।


  • खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।


  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।


  • न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?


  • तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।


  • जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का अानंन्द अनुभव करेगा।

  •                                             
                       -----------------------ॐ---------------------------

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    मेरी प्रिय अभिनेत्री :- रानी मुखर्जी !

                      दोनों ही है घर आपका खुद फैसला करो !
                               दिल में रहा करो  या नज़र में रहा करो !!

      
    (रानी मुखर्जी) 

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    मेरे बचपन का स्कूल

                               मुझे बहुत सताती हैं बचपन की वो यादें !
                                    जब मैं जाता था स्कूल पढने और लिखने !!
     
                                    दोस्तों के साथ मिलकर मैं खूब मस्ती करता !
                                    लेकिन अजमा मैडम से मैं बहुत था डरता !!
     
                                    वैसे तो मैं दोस्तों के संग खूब सरारत करता !
                                    लेकिन मैडम के सामने सरीफ बन कर रहता !!
     
    (अजमा मैडम , मैं और मेरे सभी दोस्त )
     
                                काश मैं फिर से वही छोटा बच्चा बन पाता !
                                अपने स्कूल में जाके मैडम को खूब सताता !!
     
                                अपने दोस्तों के संग खूब मैं  धमाल मचाता !
                                शोभा मैडम को भी मैं खूब नाच नाचता !!
     
    (शोभा मैडम , मैं और मेरे सभी दोस्त )

    मेरे स्कूल का नाम :- पिपद्दीवाला इंग्लिश मीडियम स्कूल, सूरत
     

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    मेरे प्रिय भांजा और भांजी !

                                       ये बात समझ में आयी नहीं !
                                       मामा ने मुझे बतायी  नहीं !!
                                       मैं कैसे मीठी बात करूँ !
                                       जब मैंने मिठाई खायी नहीं !! 


    श्रीया

    आयुष और अनुष्का

    श्रीया

    श्रीया

    आयुष

    आयुष

    आयुष

    श्रीया

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    दरगाह अजमेर शरीफ


    दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता है। दरगाह अजमेर डॉट काम चलाने वाले हमीद साहब कहते हैं कि गरीब नवाज का का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि लोग यहाँ खिंचे चले आते हैं। यहाँ आकर लोगों को रूहानी सुकून मिलता है।

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    भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह। ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...
    तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं

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    भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह।

    ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...
    तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।

     
    भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह।

    ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...


    तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।



     धार्मिसद्‍भाव की मिसाल- धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए...ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है


    देग का इतिहास- दरगाह के बरामदे में दो बड़ी देग रखी हुई हैं...इन देगों को बादशाह अकबर और जहाँगीर ने चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।

    कैसे जाएँ- दरगाह अजमेर शरीफ राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। यह शहर सड़क, रेल, वायु परिवहन द्वारा शेष देश से जुड़ा हुआ है। यदि आप विदेश में रहते हैं या फिर यहाँ से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहते हैं तो दरगाह अजमेर डॉट कॉम या राजस्थान पर्यटन विभाग से संपर्क कर सकते हैं।


     

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    मेरे बचपन की तस्वीर !

    ये मेरे बचपन की तस्वीर है। तब मैं बहुत छोटा था और बड़ी शरारत करता था। उस समय मैं और पूरा परिवार सूरत (गुजरात) में रहते थे। घर में सभी प्यार से मुझे बबलू कहते हैं।

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    मुझे गाजर का हलवा बहुत पसंद है !

    गाजर का हलवा (दो लोगों के लिए)

    पकाने का समय – १० मिनट

      सामग्री: –
    १- चार कप – लाल गाजर कसी हुई
    २- दो कप – मलाई रहित दूध (टोंड)
    ...३- दो चम्मच (टीस्पून) – घी
    ४- तीन चम्मच – खोया (मावा)
    ५- तीन चार किशमिश
    ६- एक चम्मच छोटी इलायची (पीसी हुई)
    ७- एक चम्मच बादाम , काजू
    ८- 15-20 चम्मच शुगर (या स्वादानुसार)

    बनाने की विधि :–

    एक नॉन स्टिक पैन में घी गरम करें और उस में गाजर को धीमी आंच पर लगभग दो से तीन मिनट तक पकाएं.
    • दूध डालिए और चलाते रहिये जब तक वो भाप बन कर उड़ नहीं जाता
    • खोये को मसल कर गाजर मिश्रण में मिलाएं
    • शुगर डालिए और चलाना जारी रखिये जब तक मिश्रण थोडा गाढ़ा नहीं हो जाता
    • पीसी हुई इलायची, बादाम और किशमिश से सजा कर गरम गरम सर्व करिये.

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    मुझे लौकी का रायता बहुत पसंद है !

    मुझे लौकी का रायता बहुत पसंद है !

    लौकी का रायता  बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है. आप में से कुछ लोग लौकी की सब्जी खाना भले ही नहीं पसन्द करें, लेकिन लौकी का रायता अवश्य पसन्द करेंगें. आईये आज हम लौकी का रायता  बनाते हैं. चार लोगों के लिये. समय 10 मिनिट.

    आवश्यक सामग्री -

    • दही ——— 250 ग्राम
    • लौकी ———- 250 ग्राम
    • नमक ———- स्वादानुसार ( एक चौथाई छोटी चम्मच )
    • हरी मिर्च ——— 1 ( बारीक कटी हुई )
    • भुना हुआ जीरा ——— आधा छोटी चम्मच

    बनाने की विधि :-

    लौकी को छील कर धो लें. अब इस लौकी को कद्दूकस कर लें.
    कद्दूकस की गई लौकी को किसी बर्तन में भरकर उबालने रख दें. ( लौकी को उबालते समय एक टेबिल स्पून पानी डाल दें, और धीमी गैस पर ढककर उबाले ). 5-6 मिनिट में लौकी पक जाती है.
    दही को मथ लें या मिक्सी में फेंट लें.
    फैटे हुये दही में, पकी हुई लौकी,नमक, हर मिर्च् और भूना हुआ जीरा डाल दें. लौकी का रायता तैयार है.
    लौकी के रायता  को बाउल में डाल कर ठंडा होने के लिये फ्रिज में रख दें. खाने के समय निकालिये, और ठंडा रायता गरम गरम खाने के साथ परोसिये और खाइये

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    मुझे पनीर बहुत पसंद है!

    बनाने की विधि : 
    पनीर को 2 इंच के टुकड़ों में काट लें। एक कड़ाही में आधा घी डालकर उसमें प्याज, अदरक, हरी मिर्च और मोटी इलायची डाल दें। 3-4 मिनट तक तलने के बाद उसमें टमाटर डालकर 7-8 मिनट के लिए ढककर रख दें। दही डालकर 5 मिनट तक पकाये, 1/2 कप पानी डालकर ठंडा होने दें। ग्राइंडर में डालकर बारीक पीस लें।
    अब कड़ाही में बचा हुआ घी डालकर गरम करें अब इसमें ग्राइंडर में पिसी हुई ग्रेवी डाल दें, ग्रेवी को गाढ़ा होने तक पकाये। सर्व करने से पहले दूध और पनीर डालकर 3-4 मिनट तक पकाये हरे धनिये और कसे हुए पनीर से गार्निश करके सर्व करें।
    सामग्री :
    250 ग्राम पनीर, 3 टे.स्पून घी या मक्खन, 1 प्याज (लम्बी कटी हुई), 1/2 इंच का टुकड़ा अदरक, 2 हरी मिर्च, 4 टमाटर, 2 मोटी इलायची, 1/4 कप दही, 1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 1/2 टी स्पून गरम मसाला, नमक स्वादानुसार, 1/2 कप दूध, 2 टे.स्पून टॉमेटो सॉस।
    गार्निश के लिए:
    2 टे.स्पून कसा हुआ पनीर, 1 टे.स्पून बारीक कटा हरा धनिया।
    कितने लोगों के लिए : 5

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    मेरे गुरूजी डॉ रूप चन्द्र "मयंक" शास्त्रीजी !

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    मेरे परम पूज्य ईस गुरुदेव भगवान हनुमान स्वामी जी !

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    मेरे परम पूज्य गुरुदेव सन्त श्री आशारामजी बापूजी

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    फूलों से मुझे बहुत प्यार है!

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    "मेरी पन्तनगर यात्रा" (प्रमोद मौर्य)

    पन्तनगर के मनोहारी दृश्य














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