( श्रीमद भगवद्गीता )
-------------------------गीता- सार-------------------------
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का अानंन्द अनुभव करेगा।
-----------------------ॐ---------------------------
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!
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श्री बी.एस.चौहान की टिप्पणी का हिन्दी रूपान्तर यह होगा!
भाग्य
जिन्दगी एक संघर्श है। और जो व्यक्ति इस संघर्श में विजयी होता है वही वास्तव में जिन्दगी जीने का असली हकदार है। यह कथन है प्रसिद्ध विद्धान लूथर का। परन्तु मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूं, कि संघर्श ही जिन्दगी के लिए सब कुछ है क्योंकि भाग्य ही जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है कभी - कभी देखने में आता है कि आदमी कुछ करना चाहता है कुछ सोचता है, लेकिन हो कुछ और ही जाता है।
षायद यह राजेन्द्र और बीना के भाग्य में भी लिखा था। परन्तु यह मानव जीवन की एक बहुत बड़ी बिडम्बना है। मनुश्य की जिन्दगी में जो कुछ भी होता है मनुश्य उसे पहले से नही जानता। राजेन्द्र और बीना जो कि बचपन से ही साथ-साथ पले और स्कूल पढ़े थे, समान विचार होने के कारण काफी घनिस्ठ दोस्त भी थे। इन दोंनो ने जब दुनिया को देखा व समझा तो अपने आप को अनाथालय की ठण्डी छाँव में पाया धीरे - धीरे बचपन की यह दोस्ती जवानी की दहलीज में परिवर्तित होती गयी फिर एक दिन इसी दोस्ती ने इन्हें प्यार की बैषाखी में बंाध दिया। अनाथालय की पढ़ाई पूरी करने के पष्चात राजेन्द्र को टेलीफोन कम्पनी में नौकारी मिल गयी और दोनो की नियुक्ति दिल्ली में हो गयी जबकि राजेन्द्र को कम्पनी के प्रचार व प्रसार के लिए अमेरिका जाना पड़ा। न चाहते हुए भी दोनों को एक दूसरे से जुदा होना पड़ा। दोस्ती के सम्बंध में कहा जाता हैं कि आदमी दोस्ती में जितना दूर होता है दोस्ती उतनी ही गहरी होती है। तथा
shastri ji main apka bahut -2 sukriya, apne meri kahani ko translate kiya.
aage mai janna chahta hu ki es blog amod pramod ke jariye ham kya-2 kar sakte hain. because mere pass bahut si stories and poem hain, main es blog ma madhyam se logo tak pahuchana chahta hu...
please guide me..... Balwant Singh Chauhan from Tehri Garhwal (hometown Gaza)