ये मासूम सा दिल मेरा !
            >> सोमवार, 6 अगस्त 2012 – 
            
गजल
     ज़माने की ठोकरों से मुझे, महसूस होने लगा है !
     ये मासूम सा दिल मेरा, पत्थर सा होने लगा है !!
     पहले छोटी-छोटी सी  बातें, किया करतीं थीं परेशान !
     अब परेशानियों का पहाड़ भी, राई सा होने लगा है !!
     पहले मेरा दिल हुआ करता था,  छोटा सा तालाब !
     अब आहिस्ता-आहिस्ता ये,  समंदर सा होने लगा है !!
     मैं रोता रहता था अपनों से,  बिछड़ने के गम में !
     अब मिलना और बिछड़ना , मौसम सा होने लगा है !!
     मैं उठता नहीं था, फिर से  गिरने के डर से !
     अब उठ कर जीतना, मुकद्दर सा होने लगा है !!
                                      प्रमोद मौर्या "प्रेम"

बढ़िया ग़ज़ल!
बधाई हो!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल!बधाई स्वीकारें