नयन कटार 
 
रोज मिला करता हूँ उसे , पर बात नहीं कर पाता हूँ ! 
अपने दिल का मैं उसे नहीं हाल बयां कर पाता हूँ !
 
उसकी सखियाँ मरती मुझ पे, पर मैं उसपर मरता हूँ !
उसके सपनों मैं डूब कर मैं सारी, रात नहीं सो पाता हूँ !
 
बाल सुनहरे, चन्दन काया, नैना लगे कटार !
उनका चमकता रूप , नयन कटार नहीं सह पाता हूँ !
 
चाल से नागिन भी शरमाये, बदन लगे अँगार !
"प्रेम" छुए बिना उसे मैं, एक बार नहीं रह पाता हूँ !
                         
 
                                               प्रमोद मौर्य "प्रेम"

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (22 नवंबर 2012 को 6:27 am बजे)  

प्यार-प्रीत में पगी सुन्दर गजल!
लेखन नियमित रखिए!

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